स्‍वाइन फ्लू








स्‍वाइन फ्लू के लक्षण तो तुरंत करें ये जरूरी काम






"मैं अपने बच्चे की सुरक्षा कैसे करूँ?" स्वाइन फ्लू होने पर हर माता-पिता का यह पहला सवाल होता है। स्वाइन फ्लू (H1N1) नाक, गले, श्वासनली और ब्रांकाई का एक वायरल संक्रमण है। आपको लगता है कि आपके बच्चे को स्वाइन फ़्लू है तो आपको सावधानी बरतने की जरूरत है। स्वाइन फ्लू ऐसी महामारी है जो व्यस्कों के साथ-साथ बच्चों और नवजात को भी अपनी चपेट में ले लेती है। स्वाइन फ्लू के शिकार नवजात बच्चें की देखभाल में जरा सी चूक उनमें उम्रभर के लिए कोई विकार पैदा कर सकती है या फिर उनमें उम्रभर के लिए कमजोरी पैदा कर सकती है। इसीलिए नवजात शिशु की देखभाल में बिलकुल भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। खासकर तब जब बच्चे पर स्वाइन फ्लू का कहर बरपा हो। आइए जाने नवजात में स्वा‍इन फ्लू चिकित्सा कैसे की जाती है।


 


शिशु में स्‍वाइन फ्लू के लक्षण 



  • स्वाइन फ़्लू के लक्षण वही हैं जो नियमित, मौसमी इन्फ्लूएंजा के साथ देखे जाते हैं।

  • मुख्य लक्षण बुखार, खांसी, गले में खराश और बहती नाक हैं।

  • बुखार आमतौर पर मौजूद है।

  • अन्य सामान्य लक्षण मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और थकान हैं, जिससे बच्‍चे अक्‍सर रोते रहते हैं। 


कैसे पता करें कि आपके बच्‍चे को स्‍वाइन फ्लू है


यदि आपके आस-पास स्वाइन फ़्लू (H1N1 फ़्लू) व्यापक रूप से फैला है और आपके बच्चे को बुखार के साथ स्वाइन फ़्लू के लक्षण हैं, तो शायद उसे स्वाइन फ़्लू है। आपको कोई विशेष परीक्षण प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आपके बच्चे को फ्लू की जटिलताओं के लिए उच्च जोखिम है, तो आपको अपने डॉक्टर को फोन करना चाहिए। कम जोखिम वाले बच्चों के लिए, आपको अपने बच्चे के डॉक्टर को फोन करने या देखने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि आपके बच्चे को फ्लू की संभावित जटिलता विकसित न हो। 



स्‍वाइन फ्लू में कैसे करें बच्‍चों की देखभाल 



  • स्वाइन फ्लू वायरस बच्‍चों को भी प्रभावित करता है। नवजात भी इनफ्लूएंजा एच1एन1 वायरस से ही पीड़ित होते है।

  • नवजात में स्वाइन फ्लू संक्रमण होते ही उसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए। पहले तो यह सुनिश्चत करना ही बहुत मुश्किल होता है कि बच्चे को स्वाइन फ्लू है या नहीं, है तो कितना बढ़ गया है। ये सुनिश्चत करने के बाद ही आगे कदम उठाना चाहिए। 

  • अगर बच्चा गंभीर स्वाइन फ्लू का शिकार है तो बच्चे को तेज बुखार होता है और खांसी-जुकाम भी कम नहीं होता। 

  • शिशु में स्वाइन फ्लू के लक्षण पाए जाने पर शारीरिक कमजोरी भी आ जाती है।

  • बच्चे को सांस लेने में परेशानियां हो सकती है। 

  • यदि बच्चे में स्वाइन फ्लू के लक्षण पुख्ता हो जाते हैं तो बच्चे में स्वाइन फ्लू की रोकथाम के लिए डॉक्टर की सलाह पर टीका लगाया जा सकता है।



  • यदि बच्चे को बुखार होता है तो तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क करें और डॉक्टर्स की सलाह पर शिशु की रक्त जांच करवाएं।

  • बच्चे‍ में पानी की कमी न होने दे। शिशु को समय-समय पर पानी देते रहें।

  • स्वाइन फ्लू होने के बावजूद खान-पान में कमी न रखे अन्यथा बच्चे में कमजोरी होने का खतरा पैदा हो जाएगा।

  • मां का दूध देने में कोई गलती न करें। 

  • बच्चें को अधिक देर तक गीला न रखें और बहुत ठंडे माहौल में न रखें।

  • समय-समय पर बच्चे का चेकअप कराते रहें।


 


  • नवजात शिशु चिकित्सा के दौरान नवजात को बाहर न धूमाएं और कम से कम लोगों से मिलने दें।

  • बहुत देर तक बच्चे को अकेला न छोड़ें।

  • स्वाइन फ्लू में सामान्य से अधिक देखभाल करें व डॉक्टर के संपर्क में लगातार बनी रहें और नवजात की हालत का ब्यौरा डॉक्टर को देते रहें।

  • बच्चें को स्तनपान कराते समय या कुछ भी खिलाते-पिलाते समय एंटीबायोटिक क्लींजर से हाथ धोएं।

  • बच्चें के इस्तेमाल के लिए साफ-सुथरे तौलिए और रूमाल का प्रयोग करें।

  • नवजात शिशु बहुत ही नाजुक होता है। घड़ी-घड़ी उसकी देखभाल जरूरी होती है। नवजात बच्चे की सुरक्षा के लिए बच्चे की समय-समय ठीक से सफाई करते रहें।