अच्छे लोगों की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि उन्हें याद नहीं रखना पड़ता वो याद रह जाते हें।
एस.आर.अबरोल
ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसकी जितनी जरुरत थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे।
जिंदगी का फलसफा भी कितना अजीब है,
शाम कटती नहीं और साल गुजरते चले जा रहे हैैं।
एक अजीत सी दौड़ है ये जिन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जातें,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ देते हैं।
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अकसर
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैने समुन्द्र से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में जीना।
ऐसा नहीं कि मुझमें कोई ऐब नहीं है
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं है।
जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन क्योंकि,
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले।
एक घड़ी खरीद कर हाथ में क्या बांध ली,
वक्त पीछे ही पड़ गया है मेरे।
उसने पूछा दास्तान ए-मोहब्बत क्या होती है
हमने कहा जिसका होना भी कयामत और खोना भी कयामत।
आसमान से गिरती वर्षा की नन्हीं बूंद अगर सीप के मुंह में पड़ती है तो मोती बन जाती है, आग पर गिरती है तो भाप बन जाती है, आग पर गिरती है तो मोती की तरह झिलमिलाती है। वर्षा की बूंद एक ही थी परन्तु इसका भविष्य निर्धारित हुआ जिसके साथ इसका मिलन हुआ। हमारे जीवन का भी कुछ ऐसा ही हाल होता है। अच्छे लोगों की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि उन्हें याद नहीं रखना पड़ता वो याद रह जाते हें। जीवन में हम हर जगह जीत चाहते हैं, सिर्फ फूलवाले की दुकान ऐसी है जहां हम कहते हैं कि 'हार' चाहिए।
कितने दूर निकल गए, रिश्तों को निभाते-निभाते
खुद को खो दिया हमने, अपनो को पाते-पाते
लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत हैं
और हम थक गए दर्द छुपाते-छुपाते
खुश हुं और सब को खुश रखता हूँ
लापरवाह हँॅॅू फिर भी सबकी परवाह करता हूँ
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी कुछ अनमोल लोगों से रिश्ता रखता हूँ
जीवन की भाग दौड़ में क्यू वक्त के साथ रंगत खो जाती है।
हंसती खेलती जिंदगी भी आम हो जाती है।
एक सवेरा था जब हंस कर उठते थे हम
और आज कई बार मुस्कराये बिना ही शांत हो जाती है।
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।
सोचा था घर बना कर बैठूंगा सुकून से
पर घर की जरुरतों ने मुसाफिर बना डाला।
एक दिन कबीर जी की पत्नी ने कबीर से कहा कि घर में खाने को कुछ नहीं, आटा, नकम, दाल, चावल, गुड़-शक्कर सब खत्म हो गया है। शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आईयेगा। कबीर ने कन्धें पर कपड़े का थान लादते हुए कहा कि अगर अच्छा मूल्य मिला तो निश्चय ही घर में धन धान्य आ जायेगा।
पत्नी ने फिर कहा कि अगर अच्छी कीमत न भी मिले तब भी इस बुने थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना। घर के बड़े बूढ़े भूख बर्दाश्त कर लेंगे पर कमाल और कमाली अभी बच्चे हैं उनके लिए तो कुछ ले ही आना। कबीर जी बोले जैसे मेरे राम की ईच्छा।
कबीर जी हाट बाजार चले गए। उन्हें किसी ने पुकारा और कहा कि कपड़ा तो बहुत अच्छा है। ये फकीर सर्दी से कांप रहा है। दया करके और भगवान के नाम पर यह थान मुझे दे दो। कबीर ने थान फकीर को दे दिया। दान करने के बाद उनकी आंखो के सामने भूख से बिलखते कमाल-कमाली, वृद्ध माता-पिता के चेहरे आने लगे। फिर पत्नी की कही बातें याद आने लगी।
कबीर जी गंगा तट पर आ कर ईश्वर ध्यान में लीन हो गए। उन्होनें सोचा ईश्वर सारे संसार का ख्याल करता है। मेरे परिवार की चिंता भी उसी को होनी चाहिए। कबीर ने सारे परिवार की जिम्मेदारी ईश्वर पर सौंप दी। अब ईश्वर कहां रुकने वाले थे। भगवान जा पहुंचे कबीर की झोंपड़ी में। झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।
माता लोई ने परिचय पूछा तो ईश्वर ने कहा कि वह कबीर का सेवक है। ये राशन का सामान रखवा लो। माता लोई ने दरवाजा खोल दिया। सामान दिया। सामान से सारा घर भर गया। सामान रखने के लिए घर में जगह न बची। कबीर अभी तक घर नहीं आए थे परन्तु सामान आता जा रहा था। आखिर माता लोई ने हाथ जोड़ कर कहा कि हमें कबीर जी को ढूंढने जाना है अत: अभी सामान का आना रोक दें। सारा परिवार कबीर को ढूंढते-ढूंढते गंगा किनारे पहुंचा। परिवार ने कबीर को सामाधि से उठाया। मां नीमा बोली इतना सामान भिजवाने की क्या जरुरत थी। घर में और सामान रखने की जगह नहीं बची। कबीर जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए। फिर परिवार के मुस्कराते चेहरे देख कर उन्हें एहसास हो गया कि यह सब कुछ उनके राम का ही करिश्मा है।
तीन दिनों से नल में पानी नहीं आया था। बार-बार मोटर चलाई परन्तु पानी नहीं आया। इधर-उधर पूछने से पता चला कि पानी तो आया परन्तु निर्धारित समय पर न आकर आगे पीछे आया था। पत्नी से पीने के लिए पानी मांगा। रात के बारह बजे थे। उसे कटोरी भर पानी देते हुए कहा कि एक बोतल पानी ही बचा है। थोड़े से काम चला लो। ऐसा सुनते ही मुझे लगा कि मेरी प्यास शांत हो गई है। मैंने पानी से मना कर दिया। पत्नी ने ताना देते हुए कहा कि जब तुम्हारा राम पानी भेजेगा पी लेना। तभी दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजे के बाहर पड़ोसी खड़े थे। वह बोले, "पानी आ रहा है। भर लो।" पत्नी भाव विभोर हो गई। उसकी आंखे छलक आई। आंसू बहने लगे और बोली, "सच में तुम्हारा राम तुम्हारी चिंता करता है। तुम्हारा कई बार एक्सीडेंट हुआ और तुम्हे कुछ ना हुआ। अब मुझे विश्वास हो गया है कि वह हमेशा तुम्हारे अंगसंग रहता है।"
पत्नी को सांतवना देते हुए कहा कि राम कृष्ण भगवान थे परन्तु फिर भी उनके अनेक शत्रु थे। श्री कृष्ण का तो जन्म ही जेल में हुआ। दुश्मनों- मुसीबतों से विचलित न होकर ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखकर चिंता रहित जीवन जीना ही समझदारी है।
पैर में ऐ कांटा निकल जाए तो चलने में मजा आ जाता है। मन से अंहकार निकल जाये तो जीवन जीने में मजा आ जाता है। चलने वचाले पैरों में कितना फर्क है। एक आगे है तो एक पीछे। न तो आगे वाले को अभिमान है और न पीछे वाले का अपमान। उन्हें पता है पलभर में उनकी स्थिति बदल जाएगी।