जन आस्था के देव खाटू के श्याम नरेश


राजस्थान की धरती पर पग-पग पर किसी महान संत, महात्मा, लोकदेवताओं के मन्दिर स्थित है। यहां के हर स्थान का अपना इतिहास है। ऐसे ही राजस्थान के प्रसिद्ध स्थलों में शुमार है खाटू श्याम का मंदिर। ये मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक जगह पर स्थित है, इसीलिए इसे खाटू श्याम कहा जाता है। इस मंदिर की विशेष बात ये है की यहां देवता के केवल सिर की पूजा होती है। यहां की मूर्ति के धड़ नहीं है। ये
धड़विहीन मूर्ति बाबा श्याम की है, जिनकी कहानी महाभारत और स्कन्दपुराण से सम्बंधित है। खाटू के श्याम बाबा का मंदिर काफी पुराना है। खाटू के श्याम बाबा न सिर्फ राजस्थान में बल्कि देश-विदेश में भी पूजनीय है।
फाल्गुन मेला बाबा खाटूश्याम जी का मुख्य मेला है। खाटू श्याम का मेला राजस्थान में होने वाले बड़े मेलों में से एक है। फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की  ग्यारस (एकादशी) को मेला का मुख्य दिन होता है। कार्तिक एकादशी को श्रीखाटूश्याम जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा यहां पर कृष्ण जन्माष्टमी, झूल-झुलैया एकादशी, होली एवं बसंत पंचमी आदि त्यौहार पूरे धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है। देश-विदेश से आये सभी श्रद्धालु बाबा खाटूश्याम जी का श्रद्धापूर्ण दर्शन करते हैं और दर्शन करने के पश्चात् भजन एवं कीर्तन का भी आनन्द लेते हैं। भजन
संध्या में तरह-तरह के कलाकार आते हैं जो रातभर भजन एवं कीर्तन करते रहते हैं।
स्कन्द पुराण के अनुसार महाबली भीम एवं हिडिम्बा के पुत्र वीर घटोत्कच व पत्नी मोरवी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया। ये वही वीर बर्बरीक हैं जिन्हें आज लोग खाटू के श्री श्याम के नाम से जानते हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी मां से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये। इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध हुये। अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था।
कौरवों और पाण्डवों के मध्य महाभारत का युद्ध हो रहा था। यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुए तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी मां से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े।
श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष धारण कर बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था। बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। तत्पश्चात श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा। बर्बरीक ने अपनी मां को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा।
श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने उनसे शीश का दान मांगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं मांग सकता है, अतः ब्राह्मण से अपने वास्तविक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मण रूपी कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये। कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
श्री कृष्ण ने इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया। जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये। श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को अमृत से सिंचित करवाकर उस शीश को देवत्व प्रदान करके अजर-अमर कर दिया एवं भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को कलियुग में देव रूप में पूजित होकर भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वरदान दिया। उनके शीश को खाटू में समाधि दी गयी इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कहते हैं कि एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक पर प्रसन्न होकर कहा कि मां को दिये वचन के अनुसार तुम हारे का सहारा बनोगे। कल्याण की भावना से जो लोग तुम्हारे दरबार में, तुमसे जो भी मांगेंगे उन्हें मिलेगा। तुम्हारे दर पर सभी की इच्छाएं पूर्ण होंगी। इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया।
एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चैहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर ने इस समय वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित की गयी है। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बनी है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें बाबा का नित नया रुप देखने को मिलता है। कई लोगों को तो इनके आकार में भी बदलाव नजर आता है। कभी मोटा तो कभी दुबला. कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा तेज भरा कि नजरें टिकाना मुश्किल हो जाता है।
फाल्गुन मास में अधिकतम संख्या में लाखों भक्तगण दर्शन के लिये आते हैं। भक्तों की लाखों की संख्या को देखते हुये प्रशासन की तरफ से उचित व्यवस्था की जाती है ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो। वर्ष 2018 में भक्तो की भारी भीड़ को देखते हुए यह मेला बारह दिन का किया गया है। सीकर जिला प्रशासन और श्री श्याम मन्दिर कमेटी मिलकर मेले की व्यवस्था संभालते हैं, ताकि आने वाले भक्तो को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। रींगस से खाटू रोड़ पर वाहनों का आवागमन पूरी तरह बंद रहता है। यह मार्ग केवल पदयात्रियों के लिए खुला रहता है। इस वर्ष लगभग 30 लाख लोगों के खाटूश्याम बाबा के दर्शन करने पहुंचने की संभावना है।
खाटू श्याम मन्दिर की बहुत मान्यता होने के उपरान्त भी यहां मूलभूत सुविधाओ का अभाव रहता है। मन्दिर में स्थान की कमी के कारण मेले के अवसर पर श्रद्धालुओं को दर्शन करने में आठ से दस घंटे तक का समय लग जाता है। मन्दिर ट्रस्ट निजी हाथों में होने से मन्दिर का विस्तार नहीं हो पा रहा है। सरकार को तिरूपति मन्दिर की तरह से यहां के प्रबन्धन का जिम्मा लेकर सरकारी स्तर पर कमेटी बनाकर यहां होने वाली आय को नियंत्रित कर उसी से यहां का समुचित विकास करवाना चाहिये।