अन्धविश्वास, पाखण्ड विरोधी सन्त शिरोमणि कबीर महामना फूले

जो अन्धविश्वास पाखण्ड विरोध का कार्य 14वीं शताब्दी में सन्त कबीर ने काशी (वाराणसी) में किया वही पाखण्ड विरोध का कार्य 500 वर्ष बाद (19वीं शताब्दी) महामना ज्योतिबा फूले ने पूना में प्रारम्भ किया। दोनों ही महापुरुषों की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। सन्त कबीर तो ज्यादा पढ़े लिखे भी न थेउन्होंने स्वयं अपने बारे में लिखा है "मसि (स्याही) कागज छुओ नहीं कलम गही न हाथ उन्हीं कबीर पर आज कल हिन्दी साहित्य के लोग पी0एच0डी0 कर रहे हैं। यह तथ्य कबीर चेतना शक्ति की उच्चता को दर्शाता है।


कबीर का जोर मन की शुद्धता पर अधिक था। महामना फूले ने सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक में लिखा है ''मन को सुधारे बिना सभी सुधार व्यर्थ है।" उसी क्रम में कबीर ने जोर देकर कहा है -


“पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पन्डित भया न कोय


ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पन्डित होय ।।


यहाँ पन्डित का अर्थ ज्ञानी से है (प्रेम = पे + र् + म) प्रेम का अर्थ है बिना स्वार्थ का लगाव जो कि देखने में बहुत कम मिलता है। उसके विपरीत वासना = स्वार्थ के कारण लगाव खूब दिखाई पड़ता है। प्रेम तो परिवार में भी कम दिखाई पड़ता है। प्रेम के अभाव के कारण आज परिवार, समाज, राष्ट्र पूरी पृथ्वी अपनी ऊर्जा नकारात्मक कार्यों में लगाकर अपनी ही हानि कर रही है और पूरी पृथ्वी के मानवों के मध्य तृतीय विश्व युद्ध का खतरा बढ़ता जा रहा है।


महामना फूले ने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में सार्वजनिक सत्य धर्म नामक पुस्तक में जो लिखा है उसके अनुपालन से ही विश्व में शान्ति स्थापित हो सकती है परन्तु उस पुस्तक के बारे में हमारे ही समाज के लोगों को पता नहीं है तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प तथा उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग से क्या उम्मीद की जा सकती है।


इसी प्रकार पाखण्ड पर कबीर ने लिखा है -


पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहार


ताते तो चकिया भली, पीस खाय संसार


ईंटा पत्थर जोड़ कर, ऊँची मस्जिद लई बनाय


ता चढ़ मुल्ला बांग (अजान) दे, बहरा हुआ खुदाय


उन्होंने हिन्दू, मुसलमान दोनों को फटकारा हैकोई पक्षपात नहीं किया है। इस प्रकार सन्त कबीर एक श्रेष्ठतम सन्त थे। इसी क्रम में महामना फूले ने जून 1873 में गुलामी नामक पुस्तक लिखकर पुराणों की मनगढन्त कहानियों का पर्दाफाश किया तथा लोगों को पाखण्ड, अन्धविश्वास को छोड़ने को कहा।


सन्त कबीर की उल्ट वासियों के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी हैऔर यदि जानकारी है भी तो उसका गहन अर्थ का बोध कम लोगों को होगा।


बरसे कम्बल भीगे पानी, चींटी के मुँह हस्ति (हाथी) समानी ।


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"एक अचम्भा मैंने देखा कुआं में लागी आग


पानी–पानी जल गया, मछली खेले फाग ।”


उपरोक्त दोनों से प्रतीत होता है कि यह नहीं हो सकता है परन्तु सन्त कबीर बड़े दूरदर्शी थे। उनका मानना था कि समाज में समता परक व्यवस्था यदि नहीं होगी बल्कि ऊँच-नीच, ब्राम्हण शूद्र, काले-गोरे, जन्म आधारित श्रेष्ठता होगी तब यह उल्टी लगने वाली बातें हकीकत में दिखाई पड़ेगी। 


महामना फूले ने अपना पूरा जीवन समता मूलक समाज बनाने पर लगाया कि शिक्षित होकर लोग सुधार करेंगे परन्तु आज भी जन्मजात श्रेष्ठता सवर्ण की कायम है परिणाम यह हुआ कि 15 प्रतिशत की आबादी का सवर्ण समाज आज 85 प्रतिशत शूद्र (बहुजन) से आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक नौकरियों में कहीं आगे है। जबकि संविधान की शक्ति (वोट की शक्ति) से 85 प्रतिशत अधिक विकसित होना चाहिए था।


सारांश


संत कबीर जयन्ती (ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर समस्त OBC + SC + ST को संगठित होकर महामना फूले एवं बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर का सपना साकार करना चाहिए जिसमें समस्त बहुजनों में जाति का रोग न हो सबको शिक्षा मिले, सब में समता हो, सबका विकास हो, सभी सुखी हों। यह आज राष्ट्र हित में आवश्यक आवश्यकता है।


(एस0बी0 सैनी)