परम्परा से कई लोग समाज सेवा करते आ रहे है। समाज सेवा का कोई माप दण्ड नहीं है यह तो अपनी स्वंय की खुशी के लिये कहने की बात है कि मैं भी समाजसेवी हूँ। वास्तव में वह समाज सेवी ही है क्योंकि जो भी व्यक्ति स्वार्थ से हटकर किसी और के लिए छोटी से छोटी सहायता सेवा सहयोग मार्ग दर्शन करने की भावना से काम करता है वह समाज सेवी ही है। किन्तु कई लोग ऐसे भी होते है जो कुछ करते ही नहीं अपने स्वहित अपने लाभ के लिए जो कुछ भी करता है, वह समाज सेवी कैसे हो सकता है। फिर यदि अधिकांश लोग समाजसेवी ही हैतो समाज में जागृति तेजी से क्यों नहीं आ पा रही है। यह गम्भीर चिन्तन का विषय है। आइये कुछ विचार चिन्तन करते है:
हम समाज सुधार करने वाले महापुरूषों द्वारा किये गये कार्यों का अवलोकन करते है। हमारे पुरूखों ने मानव जीवन का वैज्ञानिक स्वरूप से आनन्द नहीं लिया, वे तो केवल दाल-रोटी खाओ-प्रभु के गुण गाओ वाली परिस्थिति से सन्तुष्ट थे, उन्हें दिशा देने वालों की कमी थी और जो दिशा देने वालों विद्वान होते थे, वे ज्ञान अर्जित कर दुसरों को ठगने का काम कर अपना - अपने परिवार का जीवन यापन करते थे, वे परम्परागत शिक्षित होकर शिक्षा भी केवल अपने वर्ण तक सीमित रखकर दुसरों का लाभ उठाने की जीवन शैली अपनाते थे। फिर भी हमारे ही देश में कई ऐसे महापुरूष हुए है, जिन्हें शिक्षित होने का अवसर तो नहीं मिला फिर भी वे परोपकार की भावना से ओतप्रोत होकर दुसरों के कल्याण के लिए कुछ न कुछ करने हेतु आगे आते रहे। इस कारण वे अशिक्षित रहकर भी समाजसेवा करने में हेतु आगे सफल रहे है। जिसका परिणाम है कि छोटे से छोटे ग्राम से लेकर शहरों तक अपने अपने समाज की धर्मशाला बनाकर सार्वजनिक कार्य करते थे उनके द्वारा सामूहिक सहयोग से निर्मित धर्मशालाएँ - मन्दिर वर्षों से समाज की धरोहर है। एक बहुमूल्य समृद्धि सम्पत्ति समाज की खड़ी करके निस्वार्थ जीवन जी कर अपना योगदान कर गये है। यही धरोहर वर्तमान समाज उपयोग कर रहा है।
समाज में ऐसे महापुरूष भी हुऐ है जिन्होंने अपने लिये नहीं दुसरों के लिये अपना जीवन न्योछावर किया जैसे महात्मा जोतीराव फुले, सावित्रीमाई फुले नारायण मेघाजी लोखण्डे सन्त कबीर सन्त नानकदेव डॉ. भीमराव अम्बेड़कर, युगपुरूष रामजी महाजन, लिखिराम कावरे (म.प्र.), ताराचन्द चन्देल, रघुनाथ परिहार (राजस्थान), साधुराम सैनी, मुल्कीराज सैनी, तेलूराम सैनी, आर.एन.माली. (उत्तरप्रदेश), पृथ्वी सिंह विकसित, सुखबीर सैनी (उत्तराखण्ड) चौ. तुलसीराम सैनी, महाशय ताराचन्द आर्य, बाबू ज्ञानेन्द्र सैनी (हरियाणा), सर गुरनामसिंह सैनी डेरी बस्सी (पंजाब), जालम सिंह पटेल (छत्तीसगढ़), चौ. गगन सिंह सैनी, लाला मिट्ठनलाल तम्बाकू वाले, चन्द्रसेन फकीरचन्द सैनी, कु, सुरेन्द्र सैनी पद्मभूषण, शान्ति स्वरूप सैनी, बाबू गंगादल सैनी, दिल्ली, जगदेव बाबू, नक्षत्र मालाकार (बिहार) आदि-आदि की समाज सेवा वर्तमान पीढ़ी के लिये प्रेरणादायक है।
हमारे समाज की आबादी के मान से हमें किसी क्षेत्र चाहे राजनीति उद्योग व्यवसाय, प्रशासन आदि में आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहे है? क्या शिक्षा की कमी है? क्या आर्थिक रूप से कमजोर है ? क्या हम आगे बढ़ने वालों की टांग खींच कर नीचे गिराना चाहते है? क्या हमारे राष्ट्रीय प्रांतीय या क्षेत्रिय स्तर पर सर्वमान्य समाजनेता नहीं है? क्या हमारी विश्वशनीयता ही कोई नहीं है? क्या बहुत ही मतलबी है? क्या घमंडी है? क्या हम स्वाभीमानी है? क्या पूरी तरह से आलसी है? क्या हम दुसरों की गुलामी गिरी-खुखामद करना पसंद करते हैं ? क्या केवल बड़े नेताओं के कहने पर दरी-चादर टेबल कुर्सी बिछाने - उठाने में ही संन्तुष्ट है? क्या क्या हममें कमी है? क्या हम इतने पिछड़े है कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक ही नहीं हैं? क्या हम रीति-रिवाज में अपनी पूंजी बर्बाद करने में अपना मान-सम्मान मानते है। हम राजनेताओं के बहकावे में आकर केवल गुलामी में ही खुख होते है? क्या हमारा जीवन इन्हीं परिवेश में ऐसे ही बर्बाद होता रहेगा। करिये-चिन्तन करिये कही न कही से रास्ता मिलेगा और हम एक दुसरे के सहयोगी हितचिंतक परस्पर सहयोगी कम से कम ग्रेज्यूवेट परिवार बनकर अपना मुकाम हासिल करने हेतु उपाय करेंगे।
फिर विचार करें चिन्तन करें प्रत्येक व्यक्ति केवल कमाने खाने परिवार पालने, रिश्तेदारी निभाने के लिए ही पैदा नहीं हुआ है। अपने महापुरूषों के आदर्श मानकर हर कोई अपनी सामर्थ्य शक्ति से दुसरों के लिए अपने जीवन में कुछ न कुछ तो कर सकता है। यदि आर्थिक रूप से या मानसिक रूप से ही हमारा समाज आगे बढ़ना सीख जाएगा तो जरूर ठोस रूप से आगे बढ़ेगा। परिणाम दायक कार्यों को अंजाम देगा। अपनी-अपनी फील्ड में कुछ न कुछ करिए। बड़े सपनों को देखना प्रारम्भ करिए परिणाम आयेगा। यही समाजसेवा होगी।
हम प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षा करते है कि समाज सेवा के क्षेत्र ठोस परिणाम लाने हेतु प्रयत्न करें।