आंकड़े गवाह हैं कि मानसिक बीमारियों का प्रसार बढ़ रहा है, खासकर बच्चों और किशोरों के बीच। भारत में लगभग 1.5 करोड़ लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, करीब 10 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे से पीड़ित हैं और इनमें से 50 प्रतिशत से अधिक का इलाज नहीं हो पाता है। बहुत से अन्य लोगों का पता ही नहीं चल पाता है। साथ ही, बच्चों द्वारा अनुभव किये जा रहे मनोवैज्ञानिक तनावों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।
जहां अवसाद या डिप्रेशन अब दुनिया की एकमात्र सबसे बड़ी बीमारी है, किशोरों और युवा वयस्कों में आत्महत्या मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है, और सभी मानसिक बीमारियों का लगभग आधा हिस्सा 14 साल की उम्र से शुरू होता है। इसमें योगदान करने वाले कुछ बाहरी कारकों में पढ़ाई और प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं के बढ़ते दबाव और यहां तक कि मीडिया का एक्सपोजर भी शामिल हैं, जो हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को छू रहा है।
इस बारे में बोलते हुए, एचसीएफआई के अध्यक्ष पùश्री डाॅ. के के अग्रवाल ने कहा, ‘मजबूत चरित्र के बिना शिक्षा एक कप्तान रहित जहाज की तरह है। अच्छी शिक्षा तभी सफल होती है जब इसमें उन मूल्यों को शामिल किया जाता है जो समग्र जीवन के लिए आवश्यक हैं। जबकि योग्यता और कौशल किसी व्यक्ति की सफलता के लिए जरूरी हैं, मूल्यों के बिना एक व्यक्ति अपूर्ण रह जाता है। सभी बच्चों को जीवन मूल्य सीखने के लिए एक दिन तो देना ही चाहिए। उदाहरण के लिए, सोमवार को शब्दों में अहिंसा का पालन किया जाना चाहिए, मंगलवार को साॅरी और कन्फेशन पर जोर रहना चाहिए, बुधवार का दिन लोगांे को गैर-मैटीरियलिस्टिक चीजें उपहार में देने के लिए रखना चाहिए, गुरुवार का दिन रचनात्मकता और नवाचारों को समर्पित होना चाहिए, शुक्रवार को प्रकृति का संग-साथ और शनिवार को हर किसी को मदद की पेशकश की जानी चाहिए। हां, रविवार को कुछ नियम तोड़े जा सकते हैं।’
स्कूलों से परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है - स्वस्थ बदलाव। इस कच्ची उम्र में पनपने वाली आदतें बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में बेहतर होे सकती हैं।
डॉ. अग्रवाल, जो आईजेसीपी के ग्रुप एडिटर-इन-चीफ भी हैं, ने कहा, ‘क्वांटम भौतिकी बताती है कि डिप्रेशन और चिंता की कार्यप्रणाली पार्टिकल डुएलिटी के फंक्शन को समझने मे असंतुलन के कारण हो सकती है। इसे संतुलित करने से अवसाद और इस तरह के अन्य मानसिक विकारों के इलाज में मदद मिल सकती है। पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र शरीर को तनाव प्रतिक्रियाओं से शांत करने में मदद करके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रक्तचाप को बढ़ाने वाली तनावपूर्ण प्रतिक्रियाओं के प्रभाव से शरीर को अप्रभावित और शांत रखता है।’
पैरासिम्पेथेटिक जीवन शैली के लिए एचसीएफआई के कुछ सुझाव -
1 उन खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें जो आपके सिस्टम को सपोर्ट करें। साबुत अनाज वाले आहार का सेवन करें। हरी पत्तेदार सब्जियों, गुणवत्ता वाले प्रोटीन, स्वस्थ वसा और जटिल कार्बोहाइड्रेट को भोजन में शामिल करें।
2 पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड रहें। शरीर को हाइड्रेटेड रखने से लसीका प्रणाली विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर मैटाबोलिक वेस्ट को बाहर निकालने में मदद मिलती है। यह शरीर को डिटॉक्सीफाई करके, पोषण देता है और टिश्यू को पुनर्जीवित करता है।
3 अपनी दिनचर्या में कोई शारीरिक गतिविधि शामिल करें। व्यायाम शरीर के लिए सकारात्मक फिजियोलाॅजिकल स्ट्रेस देता है। उदाहरण के लिए, योग करने से मन और शरीर दोनों को बहुत लाभ पहुंचता है।
4 माइंडफुलनेस का अभ्यास करें। इसमें प्रथाओं, आदतों, विचारों और व्यवहारों का एक संयोजन शामिल है, जो आपको रोजमर्रा के दबावों से मुक्त रहने में मदद करता है। माइंडफुलनेस का अर्थ है जानबूझकर और सक्रिय रूप से तनाव के लिए शरीर की प्रतिक्रिया को कम करना।