शिवलिंग पर दूध, बेल-पत्र चढ़ाने की प्रथा और उसका नकारात्मक रूप

 



 


जनार्दन मिश्र


शिव पुराण में शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुंदर संयोजन है। इसमें शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणमान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्य सत्ता हैं, विश्व चेतना हैं और ब्रहमाण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया 'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप में शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्रायः सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है। शिवलिंग को शिव का प्रतीक माना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग- जहाँ-जहाँ शिवजी स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में सोमनाथ, श्री शैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्री महाकाल, ओंकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्री भीमशंकर, सेतुबंधु पर रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणशी (काशी) में श्रीविश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्री केदारनाथ और शिवालय में श्रीधुश्मेश्वर। इन बारह ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त लाखों शिवलिंग और हैं। शायद ही भारत में कोई गाँव होगा जहाँ शिवलिंग न हो यानी लाखों शिवलिंगों की हिन्दू लोग पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला तो पूरी पृथ्वी पर विष की घातकता के कारण व्याकुलता छा गयी, ऐसे में सभी देवों ने भगवान शिव से विषपान करने की प्रार्थना कीं। भगवान शिव ने जब विषपान किया तो विष के कारण उनका गला नीला होने लगा। ऐसे में सभी देवों ने उनसे विष की घातकता को कम करने के लिए शीतल दूध का पान करने के लिए कहा, इस पर भी भोलेनाथ ने दूध से उनका सेवन करने की अनुमति मांगी। दूध से सहमति मिलने के बाद शिव ने उसका सेवन किया, जिससे विष का असर काफी कम हो गया। इस तरह समुद्र मंथन से निकले हलाहल से सृष्टि की रक्षा की जा सकी। इसलिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। विशेततौर पर सावन के महीने तथा प्रत्येक सोमवार को शिवभक्त शिवलिंग पर दूध एवं बेल पत्र चढ़ाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं। हम अपनी पौराणिक कथाओं के अनुसार शिवलिंग पर दूध, बेल पत्र तो चढ़ाते ही हैं शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर श्रीफल भी चढ़ाते हैं। यदि हम शिवलिंगों की संख्या को ध्यान में रखकर अनुमान लगायें तो हजारों टन दूध शिवलिंग पर सोमवार को चढ़ाया जाता है। खासकर शिवरात्री के पर्व पर तो इसकी मात्रा और भी ज्यादा हो जाती है, पर यह जानकर अत्यंत दुःख होता है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया दूध नालियों में बह जाता है या कहीं व्यवस्था भी की गई हो तो धरती में समा जाता है यानी धरती सोख जाती हैहजारों वर्षों की इस परम्परा में शिवलिंग के ऊपर चढ़ाया गया दूध ऐसे न बह जाय। उसका जनहित में सार्थक उपयोग हो, इसके बारे में शायद ही किसी पुजारी एवं महंत ने पहल की हो। हमारे देश में ऐसे लाखों गरीब लोग हैं जो चाय के लिए भी दूध रोज नहीं खरीद पाते हैं। ऐसे में यदि हर शिवालयों के प्रधान एवं पुजारी ऐसी व्यवस्था कर दें कि शिव पर चढ़ाया हुआ दूध उनके पास साफ सुथरा टैंक में जमा हो या शिवलिंग से दूध का स्पर्श कर उसे पास में रखे टैंक में डाल दें और उस दूध को ऐसे लोगों में वितरित किया जाय जो गरीबी के कारण दूध नहीं खरीद सकते हैं तो शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परम्परा भी खंडित नहीं होगी और लाखों गरीब बच्चों को भी दूध मिल जाएगाशिवरात्रि के दिन तो अज्ञानी शिव भक्त कच्चे श्रीफल (बेल फल) को इतनी तदाद में चढ़ाते हैं कि देखकर कोई भी विवेकशील व्यक्ति हैरान हो जाता हैजाहिर है उन कच्चे बेल फलों को नहीं तोड़ा जाए तो समय आने पर वे पकेंगे। पका हुआ श्रीफल स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी होता है। जबतक हम अपनी अज्ञानता से पर्दा नहीं हटाएंगे हम ऐसी सार्थक चीज को नालियों में बहाते रहेंगे और बेल जैसे फल को कच्चे में ही तोड़कर बरबाद कर देंगे। हो सकता है हजारों शिव भक्तों को मेरी ऐसी सीख से चोट पहुँचे पर मेरी ऐसी सोच पर मंथन करेंगे तो उन्हें इसकी सार्थकता को समझते देर नहीं लगेगी। जब तक हम अपनी नकारात्मक सोच से नहीं उबरेंगे ऐसी गलतियां करते रहेंगे।