जब 1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो इस बंटवारे के बाद अनगिनत लोग दंगे में मारे गये जो भारत और पाकिस्तान के आम जनता के लिये बहुत ही बुरा साबित हुआ। आज जब हम उस त्रासदी पर नजर डालते हैं तो लगता है कि वास्तव में कुछ स्वार्थी किस्म के नेताओं ने अपनी राजनीति चमकाने या हीरो बनने के चक्कर में भारत पाक की भोली जनता को जानबूझकर दंगे में ढकेल दिया।
देश में जब भी दंगे होते हैं तो कुछेक गद्दार किस्म के नेता किसी विशेष जाति या धर्म का ठेकेदार बनकर आम जनता को गुमराह करके उन्हें और दंगे करने के लिये परोक्ष रूप से तैयार करते हैं चाहे गुजरात का गोधरा कांड हो, चाहे यूपी का मुजफ्फरनगर, शामली हो या काशगंज। इन सब के पीछे देश द्रोहियों का हाथ होता है जो देखने में तो देशभक्त जैसे होते है लेकिन अन्दर से दो समुदायों को लड़ाने, धर्मान्धता व कट्टरता फैलाने में माहिर होते हैं। सरकारें व कानून भी इन धर्म के ठेकेदारों के ऊपर कोई कडी कार्यवाही नही करती जिससे इन गद्दारों का मनोबल बढ़ता जाता है और ये समाज में नफरत का बीजारोपण करने से चूकते नहीं है।
देश की आजादी के लिये अपने परिवार व जिन्दगी की परवाह किये बिना देश के लिये बलिदान देने वाले देशभक्तों की आत्मा पर क्या बीती होगी जब देश के कुछ स्वार्थी किस्म के लोग भारत बंद का आह्वान करते हैं और पूरे देश में दंगे जैसा माहौल बन जाता है और इसकी चपेट में आकर न जाने कितने बेकसूर लोग अपनी जान गवां दी।
आज देखा जा रहा है कि सभी दलों के नेता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के सच्चे हितैषी बनने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसके पीछे अम्बेडकर के विचारों का कोई महत्त्व नहीं बल्कि अम्बेडकर समर्थकों के वोट पर नजर है। बसपा जो अम्बेडकर जी के पद चिन्हों पर चलने का ढिंढोरा पीटकर वोट की राजनीति करती थी, इस बार भाजपा उससे भी आगे निकल गई। आखिर ये राजनैतिक दल देश के लोगों को कितना मूर्ख बनायेंगे?
विकास की बात से इनका जितना सरोकार नहीं है, उससे कहीं अधिक एक दूसरों की शिकायत करने में उलझते नजर आते है। कुछ नेताओं की दशा तो ऐसी है कि वे जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद करने पर तुले हैं। माननीयों के विकास कार्यों के आंकडे़ भी चांैकाने वाले होते हंै कि ये नियत समय के अन्दर अपने मद में आये पैसे को खर्च नहीं कर पाते है और क्षेत्रा के लोग विकास की राह देखते रह जाते है। देश के नेताओं की गंदी राजनीति ही विकास में बाधक साबित हो रही है।
देश में जो वास्तव में नेतृत्व की क्षमता रखता है वह चुनाव जीत नहीं सकता क्यांेकि आज का चुनाव भी पैसे वालों का हो गया है। गरीब प्रत्याशी जीत ही नहीं पायेगा क्योकि उसके पास पैसा नहीं है जो चुनाव आयोग की नजरों से छुपाकर मतदाताओं को खुश कर सके। चुनाव के समय सुनने को आता है कि फलां नेता को टिकट मिल गया लेकिन कुछ ही दिन बाद पता चलता है कि टिकट काटकर किसी दूसरे को दे दिया गया। ज्यादातर मामलों में ऐसा तब ही होता है जब पैसे की बात आडे़ आती है। आज के ज्यादातर नेताओं में देशभक्ति की कोई भावना नहीं है। केवल उनको पद, शोहरत और पैसे की जरूरत है। इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि देश में अच्छे नेताओं की कमी है। आज भी काफी संख्या में अच्छे व देशभक्त नेता हैं जो देशहित में कार्य करना पसंद करते है। नेताओं की फालतू बयानबाजी यह दर्शाती है कि वास्तव में ये नेता नेतृत्व करने की क्षमता नही रखते है, बस यूं ही नेतागिरी करते हैं।
यदि देश के नेता अपने रवैये में परिवर्तन नहीं करेंगे तो देश को विकसित राष्ट्र बनाने की बात तो दूर, देश का सही विकास भी नही कर पायेंगे। इसके लिये देश के सभी नेताओं को राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर कार्य करना श्रेयस्कर है। नेताओं के कार्यों का अनुसरण अधिकारी भी करते है क्योंकि देश का अधिकारी पढ़ लिखकर किसी भी पद को प्राप्त करता तो वह जानबूझकर गलत कार्य नहीं करना चाहता है लेकिन नेताओं के दबाव या इशारे पर सभी कार्य करने को विवश हो जाता है। यदि भारत के नेता सुधर जायें तो देश को विकसित राष्ट्र बनने में देर नहीं लगेगी क्योकि नेताओं की गंदी राजनीति ही देश के विकास में बाधक है।