सामाजिक एकजूटता के लिए विश्वसनीय बनना होगा

सामाजिक चिन्तन भाग -25


किसी भी संस्था, समाज सभा, संगठन, संघ, महासंघ, महासभा, परिषद, का निमार्ण एक दुसरे का विश्वास एवं दिल जीतकर समाज के उत्साहित, जागरूक, परोपकारी, जनसेवी, समाजसेवी लोगों का एक समूह के बिना संभव नहीं है। फिर कोई भी संस्था किसी उद्देश्य लक्ष्य कार्यक्रम को लेकर ही बनाई जाती है। बनाने वालों का आत्म विश्वास होता है, और इसी कारण संस्था बनने पर जो काम करती है, उसके पदाधिकारी एक दुसरे की टांग खिचांई जब-तक नहीं करते संस्था अपने उद्देश्यों लक्ष्यों को पाने हेतु कोई न कोई उपक्रम कार्यक्रम करती है। और जो कार्यक्रम होते है, यदि वे पोरपकार-समाज सेवा की भावना से पदाधिकारीगण करते है उन्हें सभी का अपार सहयोग तन-मन-धन का मिलता रहता है, और बड़े से बड़े लक्ष्यों को पा सकते है। और पाने की लालसा से निरन्तर कुछ पदाधिकारी इमानदारी से घर-बार की सेवा, देखभाल के साथ-साथ समाज सेवा करते हुऐ सम्मान भी पा रहे है।


यह भी देखने में आता है कि जो भी पदाधिकारी अपनी वाहवाही अपने मान सम्मान अपनी महत्वकांक्षा के लिए करते है, उनको लम्बी अवधि तक सहयोगी लोग नेतागिरी स्वीकार नहीं कर पाते है। और एक न एक दिन ऐसे स्वार्थी तत्वों को भले ही पदाधिकारी बना लिया है या बन गया है। चाहे चुनाव से या आपसी सहमति से किन्तु ऐसे लोगों की स्वीकार्यता पर संन्देह उत्पन्न हो जाता है, और समय आने पर उन्हें संस्था के पद से अलग-अलग होना ही पड़ता है। कुछ अंहकारी अलग-अलग नई-नई संस्था बनाकर उससे जुड़ेलोग जब अलग होने लगते है, तब ऐसी संस्था बन्द सी हो जाती है। या घिसटती रहती है।


कोई भी संस्था बनने के बाद उसकी विश्वसनीयता बनाने हेतु उसे सरकारी विभाग से रजिस्टर्ड कराना ही चाहिये, फिर सरकारी लाभ पाने हेतु आवश्यक लेखा-जोखा बनाकर प्रतिवर्ष सभा में रखना जरूरी है, फिर आयकर विभाग में पंजीकृत कर आयकर की धाराओं के तहत लाभ पा सकते है। प्रतिवर्ष नियमानुसार शासन के विभाग को रिटर्न विधिवत रूप से भेजना जरूरी है। चाहे छोटी, मध्यम, वृहद कितनी ही बड़ी संस्था हो उसे लेखा जेखा से युक्त रखने का दायित्व पदाधिकारी होता है। और जहाँ विश्वास होता है, वहां सफलता मिलती है।


फिर संस्था बनने के बाद सहमति से कार्यक्रम बनाकर समाज हितो की गतिविधियां करना पदाधिकारियों का दायित्व है यदि परोपकार के कार्य जनमानस के सामने आयेंगे तो तन-मन-धन से भरपुर सहयोग सहायता भी मिलती रहेगी, इसी कारण वर्षों पुरानी संस्थाओं द्वारा शिक्षण, प्रशिक्षण, सस्थान संचालित है। समाज हित की धर्मशाला बनाई स्वास्थ्य सेवा के केन्द्र बनाये सहकारी समितयां बनाकर परस्पर लाभ के कीर्तिमान स्थापित किये युवक-युवति परिचय सम्मेलन आदर्श सामूहिक विवाह के सफल आयोजन करके समाज के हितों को आगे बढ़ा रहे है। समाज में व्याप्त कुरितियां धीरे-धीरे समाप्त करने की दिशा में समाज सेवी पहल करते है। सामूहिक आयोजन से फिजुलखर्ची रूकती है, और जो धन बचता है, उससे परिवार की पीढ़ीयों को शिक्षित, प्रशिक्षित, उद्योग, व्यापार में पूँजी लगाकर अपने परिवार का तो भला करते ही है, और समाज हितेषी कार्यों के लिए योगदान देने की भावना भी पनपती है। एक तो बचत होती है, दुसरी और समाज का सम्मान, उसका यश पँहु ओर फैलाता है। यह सब परस्पर विश्वसनीयता से ही संभव हो सकता है।


जो समाज एकजूट है, वह सभी दिशा में आगे भी बढ़ रहा है, उसके समर्पित कार्यकर्ता सामाजिक सम्मान के साथ राजनैतिक वर्चस्व भी हासिल करते है । एकजूटता से आशय हमें किसी न किसी व्यक्ति को अपना मुखिया स्वीकार करना ही होगा, और स्थानीय मुखिया बनाकर ये मुखिया गण कस्बा, तहसील, जिला, संभाग, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर इसी विश्वसनीय से अपनी एकजूटता स्थापित कर सकते है, और कई समाज अपनी एकता की शक्ति प्रकट भी करते है। इसी कारण थोड़ी सी नाममात्र की जनसंख्या वाले समाज सभी स्तर पर अगवानी राज कर रहे है। शासन प्रशासन पर कब्जा करने में सफल हो रहे है।


जरा चिन्तन करिये अपना समाज बड़ी जनसंख्या में 10% से अधिक होने पर भी समाज कार्यकर्ताओं की भागीदारी प्रायः शून्य तक वर्षों से बनी हुई है, क्या कारण है, हम एक दुसरे की आलोचना करते है, टाँग खिंचाई करते रहते है, सामूहिक एकजूटता बना कर जन शक्ति का परिचय नहीं देते है। धनशक्ति का संचय ही नहीं करते, परस्पर योगदान क्यों नहीं करते शासन प्रशासन में क्यों पिछड़ रहे है। हमारी आवाज कहीं क्यों नहीं सुनाई देती है सोचिये यदि हमारे बीच कोई विश्वसनीय व्यक्ति नीचे से राष्ट्रीय स्तर तक सामने आ जाये तो सामाजिक एकजूटता से सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता ।


करिये चिन्तन और एकजूटता बनाने हेतु विश्वसनीयता के साथ कार्यक्रम करिये जरूर सफलता मिलेगी।