जागरूकता सक्रियता से असली समाज सेवा

प्रायः सभी मानव समाज सेवा करना चाहते है, किन्तु समाज में चिन्तन, मनन, जागरूकता, सक्रियता, परोपकार की ठोस पहल अभी और करना शेष है। यदि समाज सामाजिक शैक्षणिक आर्थिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में अपने लोगों की भूमिका स्थापित ही नहीं कर पाये, तो फिर समाज कैसे आगे बढ़ पायेगा, कोई न कोई तो आगे बढ़े और समाज को ऐसा विश्वास दिलाये कि समाज आपके साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर पँहु दिशा में समाज की उन्नति प्रगति एकजुटता दिखाते हुए, आगे के लिये उदाहरण स्थापित करने लायक बन जाये।


 


हाँ यह नहीं कह सकते कि समाज पूरी तरह सोया हुआ है, हमारे बड़े बुजुर्गों ने जितना भी संभव हो सका, अपनी तत्कालीन समझ बनाकर आपस में मिलकर सहकार की भावना से समाज सुधार के साथ-साथ समाज विकास के कामकिये, जिसके कारण ही देशभर के शहरों कस्बों ग्रामों में सामाजिक सम्पत्तियां स्थापित हुई है। अनेक मन्दिर, धर्मशाला, विद्यालय, महाविद्यालय, स्वास्थ्य सेवा परोपकार की भावना से बनाकर आज की पीढ़ी के लिये स्मरण करा रहे है कि आप भी कुछ न कुछ तो जरूर करो, यदि करोगे तो समाज जरूर आगे बढ़ पायेगा।


हमारे महापुरूष महात्मा बुद्ध, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, संत कबीर, नानक, महात्मा जोतीराव फुले, छात्रपति शाहू महाराज, नारायण मेघाजी लोखण्डे, बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर, युगपुरूष, रामजी महाजन आदि जो अपने लिये अपने वालों के लिये ही नहीं अपितु समाज के प्रत्येक तबके के लिए अपनी-अपनी समझ एवं सामर्थ्य से जन मानस के कल्याण करने हेतु ऐसी समाज सेवा की जो अमिट रूप से विद्यामान रहना है। आने वाली पीढ़ी को याद दिलाते हुए इससे भी आगे कुछ करने की प्रेरणा पैदा करती है।


देश के विभिन्न अंचलों में अपने समाज का कोई भी व्यक्ति जब जाता है और समाज की धरोहर की तलाश कर सही मुकाम पर यदि पँहुच जाता है, तो समाज के व्यक्ति जाने अन जाने ही परस्पर प्रेम की भावना से आदर-सत्कार करने हेतु उस्तुक बने रहते है। जो व्यक्ति समाज सेवा की भावना से अपना घर-बार छोड़कर कहीं निकल जाता है तो समाज उसे हाथों-हाथ उठाकर अपनत्व की भावना से जो भी संभव हो मान-सम्मान जरूर करता है। आपकी बातों तथा मार्गदर्शन को समझने हेतु लालायित रहता है। चाहे कितना ही बड़ा धनवान, सामर्थ्यवान, बलवान, गरीब, मध्यम किसी भी श्रेणी का व्यक्ति हो, वह अपने समाज के आये हुए अतिथि का स्वागत करने हेतु तत्पर बना रहता है।


आज कल लोग समाजसेवी तो हरकोई बनना चाहता है किन्तु अपना घर परिवार रहने का मुकाम छोड़े बिना ही समाज सेवी बनने की लालसा पाले रहता है, ऐसे में किस प्रकार की समाज सेवा संभव हो सकती है। यदि समाज सेवा की भावना जाग्रत हो जाय तो घर-बार का सामंजस्य बनाते हुए भी समाज के लिये कुछ भी कर सकता है। और यदि कुछकरेगा तो परिणाम जरूर आयेगा और परिणाम आयेगा तो उन्नति तरक्की चहुँ और संभव हो सकती है। कुछ समाज नेता घर बैठे ही उपदेश मार्गदर्शन देने के आदि बन जाते है किन्तु ठोस कुछ करते नहीं है, लेकिन अच्छे समाज सेवी कहलाना अपनी शान समझ लेते है।


सौंचिये समाज के लिये कुछ करने की ठान लिजिए और अपने जीवन के प्रत्येक पल-क्षण में से समय निकाल कर कुछ भी सेवा, परोपकार करना प्रारम्भ कर दीजिए हाँ अपनी क्षमता में ही परोपकार, समाज सेवा संभव हो सकती है जरूरत से अधिक संभव नहीं हो सकती।


ऐसे भी समाज सेवी होते है। एक उदाहरण लीजिए महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान की भूमि लेने के लिए अकस्मात रूप से नागौर जिले में हम पहुँच वहाँ एक शासकीय कार्यालय में एक व्यक्ति से अधिकारी के बारे में जानकारी ली, उस व्यक्ति ने सामान्य जानकारी तो दी, किन्तु जब उसका हमने नाम एवं समाज की जानकारी ली तो वह समाज का व्यक्ति ही निकला उसने समाज के व्यक्ति जानकर अपनी कैंसर की बीमारी भूलकर हमारे लिये सभी संभव सहयोग करना प्रारम्भ कर दिया। और जब-जब हम उससे मिले उसने अपने सभी जरूरी काम छोड़कर या तालमेल बढ़ाकर हमारे साथ पूर्ण सहयोगी बना रहा। यह भी होती है समाज सेवा।


कई समाज सेवी दिखावा भी करते है कि, मैं तो बहुत बड़ा समाज सेवी हूँ, मेरा नाम तो दुनिया में अवश्य अमर होगा किन्तु जागरूक, सक्रिय होकर परस्पर सेवा के लिये आगे बढ़ता ही नहीं ऐसे में कैसे संभव होगा कि समाज उन्नति कर सके। यह दिखावे की समाज सेवा किसी के काम की नहीं हो सकती है।


आइये हर कोई किसी उम्र का कितना ही गरीब, मध्यम, अमीर, महिला, पुरूष कोई किसी भी जागरूक सक्रिय होकर परोपकार के लिये अपनी-अपनी क्षमता अपनी सुविधा के अनुरूप दुसरों के लिये जो कोई काम कर रहे है। उन्हें तन-मन-धन से अपनी स्वेच्छा से सहयोग करने हेतु आगे बढ़ जाइये। यही आपकी जागरूकता देश व दुनिया में एक नई रोशनी फैलायेगी। । और समाज का उत्थान एवं विकास अवश्य होगा।