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महात्मा जोतिराव फुले का माहात्मय इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि वे तत्कालीन समाज को धर्म युग (दि एज ऑफ रिलिजन) से निकाल कर तर्क युग (दि एज ऑफ रिलिजन) में ले आये, धार्मिक अंधविश्वास के पारंपरिक मध्य युग से बुद्धिवाद के आधुनिक युग में ले आये।


जिनके सिद्धांतों से आज भी विश्व में उथल-पुथल मची हुई है, वे यूरोप के महान क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स (सन् 1818 से 1883) जोतिराव के समकालीन थे। इन दोनों के कार्यों का उद्देश्य एक ही था- शोषितों तथा पीड़ितों को शोषण तथा ठगी से मुक्त करना और अज्ञान तथा अन्याय को हमेशा के लिए दफना देना, लेकिन इन दो युगपुरुषों के कार्य के रूपों में बड़ा अंतर था। उस वक्त यूरोप में मंत्र युग का आगमन हो चुका था, जबकि महाराष्ट्र मंत्र युग में ही जी रहा था। जब कार्ल मार्क्स ज्ञान की पहाड़ी पर खड़े होकर मजदूर वर्ग को सत्ताधारी बनने के लिए ललकार रहे थे, तब जोतिराव अज्ञान तथा अंधकार की अति प्राचीन घाटी में शूद्रों, अतिशूद्रों तथा नारी वर्ग को ज्ञानरूप प्रकाश की पही किरण दिखा रहे थे। इसलिए यदि कार्ल मार्क्स महात्मा हैं, तो जोतिराव महात्माओं के महात्मा हैं।


जोतिराव ने अज्ञान का कारावास तोड़ डाल, जन्मगत विषमता का जाल तोड़ दिया, विश्व का ज्ञान भंडार सबके लिए खोल दिया और निरर्थक अंधविश्वास को चुनौती देकर हिंदू धर्म में क्रांति कर दी। इसलिए जोतिराव निःसंदेह महात्माओं के महात्मा हैं।


जोतिराव ने पहली बार समग्र क्रांति का शंख फेंका और गाँव-गाँव, घर-घर, पर्वत घाटी से समानता की वायु बहने लगी।


वही मनुष्य सच्चे अर्थों में महान होता है, जो अपना रक्त सींचकर मार्ग बनाता है ताकि दूसरे उस पर सुख-चैन से चल सकें। जोतिराव के अथक प्रयासों का ही फल हैकि आज न्याय, शिक्षा, ज्ञान, कार्यशीलता तथा प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाला संकटों का पहाड नष्ट सा हो गया है। यही कारण है कि यद्यपि जोतिराव एक सौ उन्नतीस वर्ष पहले गुजर गये हैं, तथापि वे अब भी महाराष्ट्र के सामने खड़े हैं- अटल ध्रुव तारे की तरह, सह्याद्रि पर्वत की शंखाकार चोटी की तरह और देश व दुनियाँ को शोषण उत्पीड़न अन्धविश्वास असामनता को समाप्त करने हेतु प्रेरणा दे रहे है।


जोतिराव व्यक्ति नहीं थे। इसका मतलब है कि उनके न व्यक्तिक मित्र थे न व्यक्तिक शत्रु। जो मनुष्य-मनुष्य के बीच ऊँच-नीचता के पक्षधर थे, वे उनके शत्रु थे और समानता के समर्थक मित्र! जोतिराव के इर्द-गिर्द जो लोग जमा हुए थे, वे विचारों के पास जमा हुए थे, व्यक्ति के पास नहीं। ऐसा व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह जाता, वह शक्ति बन जाता है। ऐसा व्यक्ति किसी व्यक्ति के विरूद्ध नहीं, विशिष्ट प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ता है।


जोतिराव का विचार करते हुए यदि हम वर्तमान स्थिति को देखें तो पाएंगे कि अब समय बदल गया है, राज्य कर्ता बदल गये हैं। नये हित संबंध स्थापित हो गये हैं। शोषक बदल गये हैं और शोषण के तरीके भी बदल गये हैं। महंगाई बढ़ गई है, स्वातंत्र्योत्तर काल में गरीब ज्यादा गरीब और धनवान ज्यादा धनवान बन रहे हैं, शिक्षा फिर धनवानों की बपौती बन रही है। समाज आज दो ही वर्गों में बंट गया है- बहुजन समाज और बहुजन समाज! इस स्थिति को देखते हुए लगता है कि इस महात्मा के मुक्ति संदेश की पहले की अपेक्षा अधिक आवश्यकता है और उसको पूरी तरह कार्यान्वित करने के लिए अब भी लंबा रास्ता तय करना होगा।


महात्मा जोतीराव फुले के आदर्शों को अपना कर मानव समाज उन्नति एवं प्रगति की दिशा में आगे बढ़ता रहें।